गरीबी, श्रीमंती व कर्तृत्व
गरीबी, श्रीमंती व कर्तृत्व
सच्ची देशसेवा को न्याय देने वाली आदर्श अर्थ वितरण प्रणाली ही गरीबी हटाने का एकमात्र उपाय है।
देश में गरीबी और अमीरी मनुष्य के कर्तृत्व से नहीं बल्कि दोषपूर्ण अर्थ वितरण प्रणाली से जुड़ी है, यह स्पष्ट है। असल में पैसा कोई प्रकृति-निर्मित वस्तु नहीं बल्कि मानव-निर्मित है। पैसा केवल विनिमय का माध्यम है, जिससे लोगों के बीच वस्तुओं का आदान-प्रदान सरल हो सके। इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए। पैसा जीवन जीने का साधन है, उद्देश्य नहीं। पैसों के रूप में होने वाले आर्थिक लेन-देन ही भ्रष्टाचार की जड़ हैं, और भ्रष्टाचार के कारण ही गरीबी और अमीरी का जन्म हुआ है।
आज देश में यह शर्मनाक स्थिति है कि सच्चे देशभक्त भूखे हैं और देशद्रोही सम्पन्न हैं। इसका कारण यही पैसा है। किसी व्यक्ति के कर्तृत्व को पैसों में मापना सबसे नीच कार्य है। असल में, पैसा कर्तृत्व के अनुसार मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता। जिनका काम सच्ची देशसेवा है, जिनके काम से देश को लाभ होता है, जिनसे देश की प्रगति होती है और जिनके कार्य में शरीर और बुद्धि दोनों की कसौटी होती है — वही असली कर्तृत्ववान हैं और उन्हें ही सबसे अधिक धन मिलना चाहिए। इसके लिए एक उपयुक्त आदर्श अर्थ वितरण प्रणाली विकसित होनी चाहिए। यही हमारी प्रमुख मांग है।
इस प्रणाली को लागू करने के चरण:
- नकद के रूप में होने वाले सभी आर्थिक लेन-देन पूरी तरह बंद किए जाएं। सभी लेन-देन केवल ऑनलाइन या चेक द्वारा हों।
- सरकार द्वारा प्रत्येक नागरिक के बैंक खाते का अध्ययन किया जाए।
- प्रत्येक नागरिक की मासिक औसत आय की न्यूनतम और अधिकतम सीमा का विश्लेषण किया जाए।
- प्रत्येक नागरिक को प्रति माह मिलने वाली न्यूनतम और अधिकतम राशि की सीमा तय की जाए।
- जिनकी मासिक आय तय अधिकतम सीमा से अधिक है, उनकी अतिरिक्त राशि सरकार द्वारा लेकर, जिनकी आय न्यूनतम सीमा से कम है, उनके बैंक खातों में जमा की जाए।
जब यह प्रणाली लागू होगी, तब देश से गरीबी समाप्त हो जाएगी और प्रत्येक नागरिक सुखी व सम्पन्न होगा। गरीबी दूर करने का यही एकमात्र रामबाण उपाय है, क्योंकि अमीरी का मतलब हमेशा कर्तृत्व नहीं होता और गरीबी का मतलब कर्तृत्वहीनता नहीं होता — यह केवल दोषपूर्ण अर्थ वितरण प्रणाली का परिणाम है।
– अरुण रामचंद्र पांगारकर
प्रणेता, आदर्श अर्थ वितरण प्रणाली आंदोलन तथा गरीबी उन्मूलन आंदोलन
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