धन प्रधान की उपयुक्तता प्रधान? – गरीबी निर्मूलनाचा खरा मार्ग | धन प्रधान या उपयुक्तता प्रधान? – गरीबी उन्मूलन का सही रास्ता | Wealth-Centric or Utility-Centric? – The Real Path to Poverty Eradication
💡 धन प्रधान की उपयुक्तता प्रधान? – गरीबी निर्मूलनाचा खरा मार्ग | धन प्रधान या उपयुक्तता प्रधान? – गरीबी उन्मूलन का सही रास्ता | Wealth-Centric or Utility-Centric? – The Real Path to Poverty Eradication
🔴 मराठी:
तर... पूर्णतः गरीबी निर्मूलन शक्य!
काही क्षेत्रांमध्ये पैसा जास्त मिळतो. याचा अर्थ त्या क्षेत्रांची देशासाठी वा समाजासाठी उपयुक्तता फारच असते असे नाही. पैसा जास्त मिळतो म्हणून अनेक लोक त्या क्षेत्रांत गर्दी करतात आणि तिथेही बेरोजगारी वाढते. उलट समाजासाठी उपयुक्तता असलेल्या क्षेत्रांत (शेती, आरोग्य, स्वच्छता) पैसा कमी मिळतो. काही क्षेत्रांत तर समाजविघातक काम असूनही भरमसाठ पैसा मिळतो.
म्हणून काय बदल हवा?
प्रत्येक क्षेत्र धन प्रधान न ठरता उपयुक्तता प्रधान ठरलं पाहिजे. कामाच्या सामाजिक उपयुक्ततेनुसार त्याला आर्थिक मूल्य दिलं पाहिजे. म्हणजेच ‘उपयुक्ततेनुसार धन उपलब्धता’ अशी आदर्श व्यवस्था निर्माण झाली तर प्रत्येकाच्या कामाला न्याय्य दाम मिळेल आणि गरीबी निर्मूलन शक्य होईल.
निष्कर्ष: उपयुक्तता प्रधान अर्थव्यवस्था हीच खऱ्या समतेची आणि संपत्तीच्या न्याय्य वाटपाची गुरुकिल्ली आहे.
🟠 हिंदी:
तो... गरीबी पूरी तरह खत्म हो सकती है!
कुछ क्षेत्रों में पैसा बहुत ज्यादा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे क्षेत्र समाज के लिए सबसे उपयोगी हैं। जहां पैसा है वहां लोग अधिक जाते हैं और वहां भी बेरोजगारी बढ़ जाती है। दूसरी ओर, जिन क्षेत्रों का सामाजिक महत्व सबसे ज्यादा है (खेती, स्वास्थ्य, शिक्षा), वहां पैसा बहुत कम है।
क्या बदलाव जरूरी है?
हर क्षेत्र धन प्रधान न होकर उपयोगिता प्रधान होना चाहिए। काम की सामाजिक उपयोगिता के अनुसार भुगतान होना चाहिए। यदि यह व्यवस्था बनी तो हर काम को उचित दाम मिलेगा और गरीबी का उन्मूलन संभव होगा।
निष्कर्ष: उपयोगिता आधारित अर्थव्यवस्था ही समानता और न्यायपूर्ण संपत्ति वितरण का रास्ता है।
🟢 English:
Yes... Complete Poverty Eradication is Possible!
Some sectors are highly paid, but that doesn’t mean they are the most socially useful. People flock to money-making sectors, creating competition and unemployment even there. Meanwhile, sectors like farming, healthcare, and sanitation — crucial for society — remain underpaid. Ironically, some harmful sectors are extremely lucrative.
What needs to change?
Every profession should be utility-centric instead of wealth-centric. Jobs should be valued and paid based on their social utility. If this principle is implemented, every worker will get fair compensation, and poverty eradication will become a reality.
Conclusion: A utility-based economic system is the key to equality and fair distribution of resources.
✍️ लेखक / Author
अरुण रामचंद्र पांगारकर
प्रणेता, आदर्श अर्थ वितरण प्रणाली चळवळ तथा गरीबी निर्मूलन चळवळ
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