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प्रज्ञेचा शोध की पदव्यांचा बाजार? – एका नव्या शैक्षणिक क्रांतीची गरज प्रत्येक मनुष्य एका विशिष्ट जन्मजात ओढीसह (Natural Inclination) जन्माला येतो. बौद्धिक प्रगल्भता ही केवळ प्रयत्नसाध्य नसून ती उपजत असते. जर केवळ प्रयत्नांनी कोणीही काहीही बनू शकला असता, तर आज गल्लीतले सर्व विद्यार्थी ‘अल्बर्ट आईन्स्टाईन’ झाले असते. पण वास्तव वेगळे आहे. "आजची शिक्षण पद्धती माणसाची नैसर्गिक प्रज्ञा ओळखण्याऐवजी तिला एका ठराविक साच्यात कोंबण्याचा प्रयत्न करत आहे." १. आजच्या शिक्षण पद्धतीची शोकांतिका शाळा आणि महाविद्यालये केवळ ‘माहितीचे साठे’ तयार करत आहेत. सृजनशीलतेचा विकास करण्याऐवजी मेंदूवर नाहक ताण दिला जात आहे. आजचे शिक्षण ‘सेवा’ देणारे तज्ज्ञ घडवण्याऐवजी, ‘पैसा’ कमावणारे रोबोट तयार करत आहे. पदवी मिळवण्यामागे सेवा हा भाव नसून पैसाच प्रेरणा ठरत आहे. २. कौशल्यपूर्ण आणि थेट शिक्षण: काळाची गरज आपल्याला अशा शिक्षण व्यवस्थेची गरज आहे जिथे शिक्षण केवळ पुस्तकी न राहता प्रत्यक्ष अनुभवाधार...
पहाड़ों की गोद में स्कूल-कॉलेज और पर्यावरण का ह्रास

पहाड़ों की गोद में स्कूल-कॉलेज और पर्यावरण का ह्रास

आज अनेक नेता लोग अपने व्यक्तिगत आर्थिक लाभ के लिए पहाड़ों की गोद और जंगल क्षेत्र में सस्ती जमीन खरीदते हैं और वहाँ निजी स्कूल, कॉलेज तथा व्यावसायिक प्रकल्प खड़े करते हैं। बाहर से देखने पर यह शिक्षा के प्रसार और "प्रगति" का प्रतीक लगता है, लेकिन असली तस्वीर कुछ और ही है।

इस तरह खड़ी की गई निजी शिक्षण संस्थाएँ कोई बहुत बड़ी समाजसेवा या देशसेवा नहीं होतीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थवश अधिक से अधिक संपत्ति जमा करने का साधन होती हैं। शिक्षा के पवित्र कार्य को मुनाफा कमाने का जरिया बनाना समाज के लिए खतरनाक है।

स्कूल या कॉलेज बनाने के लिए पहाड़ की ढलानों में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की जाती है। पहाड़ों की प्राकृतिक संरचना को नुकसान पहुँचता है। प्राकृतिक जलस्रोत, नाले, जैवविविधता और वन्यजीवन पर सीधा असर पड़ता है। दीर्घकालीन दृष्टि से देखें तो यह प्रक्रिया पर्यावरणीय असंतुलन पैदा करने वाली है।

शिक्षा संस्थाएँ समाज के लिए आवश्यक हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। परंतु इसके लिए पहाड़ों और जंगलों का बलिदान देना कितना उचित है? शिक्षा का असली उद्देश्य समाज की प्रगति, संस्कार और टिकाऊ विकास करना है। यदि इसी नाम पर पर्यावरण का विनाश हो गया तो उस शिक्षा का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा।

इसलिए स्कूल-कॉलेज निर्माण के लिए वैकल्पिक स्थानों का उपयोग करना, पर्यावरणपूरक निर्माण करना और प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन बनाए रखना ही असली प्रगति है। अन्यथा भविष्य में इस "प्रगति" के नाम पर हमें ही दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे। यह ध्यान रखना होगा कि नेताओं की ऐसी निजी शिक्षण संस्थाएँ वास्तव में व्यक्तिगत संपत्ति जुटाने का साधन हैं, समाजहित या देशहित से इनका कोई खास लेना-देना नहीं है।

– श्रमिक क्रांति – गरीबों की आवाज

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