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प्रज्ञेचा शोध की पदव्यांचा बाजार? – एका नव्या शैक्षणिक क्रांतीची गरज प्रत्येक मनुष्य एका विशिष्ट जन्मजात ओढीसह (Natural Inclination) जन्माला येतो. बौद्धिक प्रगल्भता ही केवळ प्रयत्नसाध्य नसून ती उपजत असते. जर केवळ प्रयत्नांनी कोणीही काहीही बनू शकला असता, तर आज गल्लीतले सर्व विद्यार्थी ‘अल्बर्ट आईन्स्टाईन’ झाले असते. पण वास्तव वेगळे आहे. "आजची शिक्षण पद्धती माणसाची नैसर्गिक प्रज्ञा ओळखण्याऐवजी तिला एका ठराविक साच्यात कोंबण्याचा प्रयत्न करत आहे." १. आजच्या शिक्षण पद्धतीची शोकांतिका शाळा आणि महाविद्यालये केवळ ‘माहितीचे साठे’ तयार करत आहेत. सृजनशीलतेचा विकास करण्याऐवजी मेंदूवर नाहक ताण दिला जात आहे. आजचे शिक्षण ‘सेवा’ देणारे तज्ज्ञ घडवण्याऐवजी, ‘पैसा’ कमावणारे रोबोट तयार करत आहे. पदवी मिळवण्यामागे सेवा हा भाव नसून पैसाच प्रेरणा ठरत आहे. २. कौशल्यपूर्ण आणि थेट शिक्षण: काळाची गरज आपल्याला अशा शिक्षण व्यवस्थेची गरज आहे जिथे शिक्षण केवळ पुस्तकी न राहता प्रत्यक्ष अनुभवाधार...

हर काम को उचित दाम दो, और हर व्यक्ति से कर वसूल करो

 हर काम को उचित दाम दो, और हर व्यक्ति से कर वसूल करो

महत्वपूर्ण सूचना: यह लेख ईमानदार राष्ट्रसेवकों के लिए नहीं है। कृपया वे इसे व्यक्तिगत रूप से न लें।

यह देश केवल करदाताओं के पैसों से नहीं चलता, बल्कि किसानों और अन्य श्रमिकों के शोषण से भी चलता है। यह कड़वा सच हम भूल नहीं सकते।

"कम काम, ज़्यादा दाम" – यह भी एक तरह की फ्रीखोरी ही है।

कर चुकाना कोई उपकार नहीं है।
सच्चे उपकारी तो किसान और श्रमिक वर्ग हैं।
वे ही अन्न उगाते हैं, वे ही निर्माण करते हैं, वे ही उत्पादन करते हैं – उनके श्रम पर ही समाज और अर्थव्यवस्था खड़ी है। फिर भी उन्हें उनके पसीने की उचित कीमत नहीं दी जाती।

किसान दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन उसे फसल का सही दाम नहीं मिलता।
ठेके पर काम करने वाले मजदूरों से १६-१६ घंटे जानवरों की तरह काम कराया जाता है, पर बदले में उन्हें बहुत ही कम वेतन मिलता है।
कोई भी सामाजिक सुरक्षा नहीं दी जाती।
इन्हीं मजदूरों की मेहनत पर ठेकेदार, दलाल और मालिक वर्ग अमीर बन रहा है।

ऐसे में करदाताओं को भी खुद से यह सवाल पूछना चाहिए –
"क्या मैं देश की सच्ची सेवा कर रहा हूँ?" और "क्या मुझे मेरे काम का उचित मेहनताना मिल रहा है?"

अगर नहीं मिल रहा है, तो आप भी शोषण का ही हिस्सा हैं — और यह शोषण अब खत्म होना चाहिए।


✍️ अरुण रामचंद्र पांगारकर
प्रणेता,
आदर्श अर्थ वितरण प्रणाली आंदोलन एवं गरीबी हटाओ अभियान

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