हर काम को उचित दाम दो, और हर व्यक्ति से कर वसूल करो
हर काम को उचित दाम दो, और हर व्यक्ति से कर वसूल करो
महत्वपूर्ण सूचना: यह लेख ईमानदार राष्ट्रसेवकों के लिए नहीं है। कृपया वे इसे व्यक्तिगत रूप से न लें।
यह देश केवल करदाताओं के पैसों से नहीं चलता, बल्कि किसानों और अन्य श्रमिकों के शोषण से भी चलता है। यह कड़वा सच हम भूल नहीं सकते।
"कम काम, ज़्यादा दाम" – यह भी एक तरह की फ्रीखोरी ही है।
कर चुकाना कोई उपकार नहीं है।
सच्चे उपकारी तो किसान और श्रमिक वर्ग हैं।
वे ही अन्न उगाते हैं, वे ही निर्माण करते हैं, वे ही उत्पादन करते हैं – उनके श्रम पर ही समाज और अर्थव्यवस्था खड़ी है। फिर भी उन्हें उनके पसीने की उचित कीमत नहीं दी जाती।
किसान दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन उसे फसल का सही दाम नहीं मिलता।
ठेके पर काम करने वाले मजदूरों से १६-१६ घंटे जानवरों की तरह काम कराया जाता है, पर बदले में उन्हें बहुत ही कम वेतन मिलता है।
कोई भी सामाजिक सुरक्षा नहीं दी जाती।
इन्हीं मजदूरों की मेहनत पर ठेकेदार, दलाल और मालिक वर्ग अमीर बन रहा है।
ऐसे में करदाताओं को भी खुद से यह सवाल पूछना चाहिए –
"क्या मैं देश की सच्ची सेवा कर रहा हूँ?" और "क्या मुझे मेरे काम का उचित मेहनताना मिल रहा है?"
अगर नहीं मिल रहा है, तो आप भी शोषण का ही हिस्सा हैं — और यह शोषण अब खत्म होना चाहिए।
✍️ अरुण रामचंद्र पांगारकर
प्रणेता,
आदर्श अर्थ वितरण प्रणाली आंदोलन एवं गरीबी हटाओ अभियान
Labels: श्रमिक क्रांति
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