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प्रज्ञेचा शोध की पदव्यांचा बाजार? – एका नव्या शैक्षणिक क्रांतीची गरज प्रत्येक मनुष्य एका विशिष्ट जन्मजात ओढीसह (Natural Inclination) जन्माला येतो. बौद्धिक प्रगल्भता ही केवळ प्रयत्नसाध्य नसून ती उपजत असते. जर केवळ प्रयत्नांनी कोणीही काहीही बनू शकला असता, तर आज गल्लीतले सर्व विद्यार्थी ‘अल्बर्ट आईन्स्टाईन’ झाले असते. पण वास्तव वेगळे आहे. "आजची शिक्षण पद्धती माणसाची नैसर्गिक प्रज्ञा ओळखण्याऐवजी तिला एका ठराविक साच्यात कोंबण्याचा प्रयत्न करत आहे." १. आजच्या शिक्षण पद्धतीची शोकांतिका शाळा आणि महाविद्यालये केवळ ‘माहितीचे साठे’ तयार करत आहेत. सृजनशीलतेचा विकास करण्याऐवजी मेंदूवर नाहक ताण दिला जात आहे. आजचे शिक्षण ‘सेवा’ देणारे तज्ज्ञ घडवण्याऐवजी, ‘पैसा’ कमावणारे रोबोट तयार करत आहे. पदवी मिळवण्यामागे सेवा हा भाव नसून पैसाच प्रेरणा ठरत आहे. २. कौशल्यपूर्ण आणि थेट शिक्षण: काळाची गरज आपल्याला अशा शिक्षण व्यवस्थेची गरज आहे जिथे शिक्षण केवळ पुस्तकी न राहता प्रत्यक्ष अनुभवाधार...

डॉक्टर और किसान: समानता का प्रश्न

डॉक्टर और किसान: समानता का प्रश्न

डॉक्टर और किसान: समानता का प्रश्न

प्रस्तावना

समाज में डॉक्टर और किसान दो अलग-अलग व्यावसायिक समूह माने जाते हैं। डॉक्टर को सम्मान, प्रतिष्ठा और उच्च दर्जा मिलता है; जबकि किसान को श्रमिक के रूप में जाना जाता है, लेकिन उसका योगदान अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। वास्तव में, ये दोनों व्यवसाय समाज के अस्तित्व के लिए समान रूप से आवश्यक हैं।

शिक्षा का मुद्दा

डॉक्टर बनने के लिए लंबा संस्थागत प्रशिक्षण लेना पड़ता है। मेडिकल ज्ञान, क्लिनिकल प्रैक्टिस और रिसर्च का लंबा मार्ग डॉक्टर तय करता है। डॉक्टरी शिक्षा कृषि शिक्षा की तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी नहीं मिलती; इसलिए यह शिक्षा प्राप्त करना कठिन होता है।

किसान की शिक्षा पीढ़ी-दर-पीढ़ी अनुभव से होती है। कृषि प्रधान संस्कृति के कारण कृषि शिक्षा सहजता से प्राप्त होती है। प्रत्येक पीढ़ी अपना ज्ञान, प्रयोग, गलतियाँ और सुधार अगली पीढ़ी को देती रहती है। किसान की यह निरंतर अनुभव-आधारित शिक्षा औपचारिक रूप में न हो, फिर भी डॉक्टर की शिक्षा के बराबर महत्वपूर्ण है।

श्रम की तुलना

डॉक्टर बीमार व्यक्ति को ठीक करने के लिए अपने बौद्धिक ज्ञान, व्यावसायिक कौशल और समय का योगदान देता है।

किसान केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि बौद्धिक श्रम भी करता है। बुवाई की योजना, मौसम का अनुमान, मिट्टी का परीक्षण, नई तकनीक का उपयोग, कीट नियंत्रण आदि सभी कार्यों में बड़ी बौद्धिक क्षमता लगती है। इसके अलावा किसान रोज़ कठिन शारीरिक मेहनत करके फसल उगाता है।

समाज में योगदान

डॉक्टर समाज को स्वास्थ्य प्रदान करता है। यदि कोई व्यक्ति बीमार हो जाए तो उसे स्वस्थ बनाता है।

लेकिन उस व्यक्ति को पहले जीवित रहना होता है, और जीवित रहने के लिए सबसे महत्वपूर्ण वस्तु भोजन है। यह भोजन किसान पैदा करता है। इसलिए डॉक्टर और किसान का योगदान परस्पर पूरक है; एक का अभाव दूसरे के कार्य को अधूरा छोड़ देता है।

समानता का आग्रह

'सर्विस पॉइंट' प्रणाली पर विचार करें तो डॉक्टर और किसान का मूल्यांकन समान क्यों होना चाहिए?

  • डॉक्टर स्वास्थ्य देता है, किसान भोजन देता है।
  • दोनों समाज के लिए अनिवार्य हैं।
  • दोनों के श्रम में शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक योगदान होता है।

इसलिए डॉक्टर और किसान को समान सम्मान, मान्यता और समाज में दर्जा मिलना चाहिए।

उपसंहार

डॉक्टर और किसान एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। वे समाज के लिए परस्पर पूरक हैं। भोजन के बिना स्वास्थ्य संभव नहीं, और स्वास्थ्य के बिना भोजन का आनंद भी नहीं। इसलिए दोनों व्यवसायों को समान रूप से मान्यता देने से ही वास्तविक सामाजिक समानता स्थापित हो सकती है।

लेखक: अरुण रामचंद्र पांगारकर
प्रणेता: श्रमिक क्रांति मिशन: गरीबों की आवाज

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