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प्रज्ञेचा शोध की पदव्यांचा बाजार? – एका नव्या शैक्षणिक क्रांतीची गरज प्रत्येक मनुष्य एका विशिष्ट जन्मजात ओढीसह (Natural Inclination) जन्माला येतो. बौद्धिक प्रगल्भता ही केवळ प्रयत्नसाध्य नसून ती उपजत असते. जर केवळ प्रयत्नांनी कोणीही काहीही बनू शकला असता, तर आज गल्लीतले सर्व विद्यार्थी ‘अल्बर्ट आईन्स्टाईन’ झाले असते. पण वास्तव वेगळे आहे. "आजची शिक्षण पद्धती माणसाची नैसर्गिक प्रज्ञा ओळखण्याऐवजी तिला एका ठराविक साच्यात कोंबण्याचा प्रयत्न करत आहे." १. आजच्या शिक्षण पद्धतीची शोकांतिका शाळा आणि महाविद्यालये केवळ ‘माहितीचे साठे’ तयार करत आहेत. सृजनशीलतेचा विकास करण्याऐवजी मेंदूवर नाहक ताण दिला जात आहे. आजचे शिक्षण ‘सेवा’ देणारे तज्ज्ञ घडवण्याऐवजी, ‘पैसा’ कमावणारे रोबोट तयार करत आहे. पदवी मिळवण्यामागे सेवा हा भाव नसून पैसाच प्रेरणा ठरत आहे. २. कौशल्यपूर्ण आणि थेट शिक्षण: काळाची गरज आपल्याला अशा शिक्षण व्यवस्थेची गरज आहे जिथे शिक्षण केवळ पुस्तकी न राहता प्रत्यक्ष अनुभवाधार...

बाढ़ पीड़ितों के लिए समाज का राष्ट्रीय कर्तव्य

 

बाढ़ पीड़ितों के लिए समाज का राष्ट्रीय कर्तव्य

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की जनता पर आया संकट अत्यंत भीषण है। सरकार ने मदद का हाथ आगे बढ़ाया है। ऐसे समय में सरकारी मदद केवल आवश्यक ही नहीं, बल्कि सरकार की मूलभूत ज़िम्मेदारी और नैतिक कर्तव्य भी है। किंतु केवल सरकारी मदद पर निर्भर न रहते हुए संपूर्ण समाज को एकजुट होकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आना आज समय की मांग है।


बाढ़ पीड़ितों की स्थिति

बाढ़ पीड़ित किसानों का जीवन पूरी तरह से बर्बाद हो गया है। खेत की फसलें तो बह ही गई हैं, साथ ही उपजाऊ मिट्टी भी बह गई है। होत्याचें नव्हते झाले की स्थिति उत्पन्न हो गई है। ऐसे समय में सरकारी मदद बहुत कम साबित होने वाली है।


समाज की ज़िम्मेदारी

  • जनप्रतिनिधि — विधायक, सांसद और मंत्री अपने एक महीने का वेतन दें।
  • उच्च वेतन पाने वाले सरकारी अधिकारी व कर्मचारी अपनी आय के अनुसार कम से कम एक दिन से लेकर एक महीने का वेतन योगदान करें।
  • समृद्ध उद्योगपति, व्यापारी और धनाढ्य वर्ग भरपूर आर्थिक मदद करें।
  • सामान्य नागरिक अपनी क्षमता के अनुसार मदद का हाथ आगे बढ़ाएँ।

हम क्या कर सकते हैं?

  • अनाज, कपड़े, दवाइयाँ और अन्य आवश्यक वस्तुएँ दान करना।
  • विश्वसनीय स्वंयसेवी संस्थाओं या सरकारी राहत कोष में आर्थिक योगदान करना।
  • बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास के लिए स्वयंसेवक के रूप में समय देना।

हम सब मिलकर किया गया छोटा सा योगदान भी किसी ज़रूरतमंद के लिए बड़ा सहारा बन सकता है।
सच्चा देशप्रेम और सच्ची देशभक्ति दिखाने का यही समय है।
आइए, इस आपदा की घड़ी में एकजुट होकर मानवता का ऋण चुकाएँ!


✍️ श्रमिक क्रांति मिशन: गरीबों की आवाज़

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