जंगल नष्ट करके वहाँ निजी स्कूल, कॉलेज और आईटी पार्क बनाना – क्या यह सचमुच प्रगति है?
जंगल नष्ट करके वहाँ निजी स्कूल, कॉलेज और आईटी पार्क बनाना – क्या यह सचमुच प्रगति है?
आज के समय में जब विकास की परिभाषा दी जाती है, तब अक्सर प्राकृतिक संसाधनों की अनदेखी की जाती है। जंगलों को काटकर और पहाड़ों को खोदकर वहाँ निजी स्कूल, कॉलेज, आईटी पार्क और बड़ी-बड़ी इमारतें बनाई जाती हैं। सवाल यह है कि क्या यह वास्तव में प्रगति का प्रतीक है?
प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास
जंगल केवल पेड़ों का समूह नहीं होते, बल्कि वे जल, वायु और भूमि संतुलन बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। जब जंगल नष्ट होते हैं, तब नदियाँ सूख जाती हैं, बारिश का चक्र बिगड़ता है और पर्यावरण असंतुलित हो जाता है।
आर्थिक लाभ बनाम सामाजिक हानि
आज कई नेता और उद्योगपति पहाड़ों और जंगलों के बीच सस्ते दामों पर जमीन खरीदकर वहाँ निजी संस्थान खड़े करते हैं। इससे उन्हें आर्थिक लाभ तो होता है, लेकिन समाज और आने वाली पीढ़ियों को अपूरणीय हानि उठानी पड़ती है।
सही प्रगति क्या है?
प्रगति का असली अर्थ यह है कि विकास और पर्यावरण का संतुलन बना रहे। शिक्षा और रोजगार आवश्यक हैं, लेकिन इनके लिए जंगल और प्राकृतिक संसाधनों का विनाश करना उचित नहीं है। वास्तविक प्रगति वही है जिसमें प्रकृति और मानवता दोनों का हित सुरक्षित रहे।
लेखक: अरुण रामचन्द्र पांगारकर
प्रणेता: श्रमिक क्रान्ति – गरीबों की आवाज
क्या आपको यह लेख पसंद आया?
कृपया नीचे टिप्पणी करें और अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाएँ!
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home